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ज्ञानवापी मस्जिद के पिलर हिंदू मंदिर के 1991

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ज्ञानवापी को लेके हिन्दू और मुस्लिम दोनों के अपने अलग अलग दाबे है जिसको लेके दोनों ही पक्ष कोर्ट में गए जहा काफी लम्बे समय तक सुनवाई हुवी जिसमे दोनों ही पक्ष अपनी बातो को सही से नहीं रख पाए जिसके बढ़ ASI SERVAY की इजाजत दे दी गयी थी .

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ज्ञानवापी मस्जिद निर्माण और उत्पत्ति:

ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 17वीं सदी में मुघल औरंगजेब द्वारा किया गया था।औरंगजेब ने कई मंदिर तोड़े पंडितो के औरतो के इज्जत लूटी इसका एक झलक मथुरा के गोपाल जी मंदिर में आज व् देखने को मिलता है वह के दिवार पर बानी सुन्दर डिज़ाइन मूर्ति और मंदिर को तोडा था आज वो मंदिर चीख चीख कर कहता है औरंगजेब के क्रूरता के कहानी। ज्ञानवापी इसे भगवान शिव को समर्पित एक पूर्व मौर्य मंदिर के स्थान पर बनाया गया था।जो औरंगजेब द्वारा तुड़वा कर मजिद बनवा दी गयी।

ज्ञानवापी कुएं के नाम पर ही मस्जिद का नाम पड़ा

इतिहास करो का मन्ना है की मंदिर के पिछली दिवार खण्डार में जो देखने को मिलता है उसके कलाकृति उसकी बनावट उसके खम्बो पर मूर्ति का होना ये प्रमाणित करता है की मंदिर को तोड़ कर उसके ऊपर मजीद बनाई गयी है। मस्जिद और मौजूदा विश्वनाथ मंदिर के बीच एक दस फीट का गहरा कुआं है जिस कुआ को परम्परिक और वैदिक कल से जोड़ा जाता है और इस कुआ’ का नाम ज्ञानवापी कुएं है पुरातात्विक पुरातात्विक सर्वेक्षण के मांग करने वाले ७४ साल के हरी संकर पांडेय है जिनकी मांग को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर ASI सर्वेक्षण को इजाजत दे दी थी और सर्वेक्षण पूरा होने के बढ़ मजिद के निचले हिस्से दिवार और खम्बो पर देखा गया हिन्दू धर्म से जुडी कलाकृति और काफी पुराणी मगरमछ’ और हनुमान जी की मूर्ति यह ASI सर्वेक्षण में साबित हो चूका है वह मंदिर के ऊपर मजिद बनाई गयी है। readmore:

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और विवाद:

वर्षों के दौरान, स्थल के संबंध में विवाद और उत्पन्न हुई हैं। दावे किए गए हैं कि मस्जिद को बनाने के लिए एक पूर्व मौर्य मंदिर को तोड़ दिया गया था। इस पर न्यायिक युद्ध और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच टानाबजो उत्पन्न हुआ है। ASI सर्वेक्षण में ये साबित हो चूका है वह मंदिर था जिसके ऊपर उसी के मलवो से निर्माण क्या गया था। जिस निर्णय को देखते हुवे सुप्रीम कोर्ट ने हरिशंकर जैन और मुस्लिम पक्ष को आपस में सलाह कर के निष्कर्ष’निकलने को बोला जिसके विरोध में हरी शंकर जैन माना करते हुवे मज़ीद को खली करने को कहा।

सैयद एम यासीन अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद

सैयद एम यासीन अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद, वाराणसी के संयुक्त सचिव हैं। वो अंग्रेजों के जमाने के भूलेख निकालकर दिखाते हैं, जिनमें ज्ञानवापी परिसर मस्जिद के तौर पर दर्ज है।यासीन कहते है ‘1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के आने के बढ़ ये विवाद होना सही नहीं लेकिन हिन्दू पक्ष के वकील का कहना है
1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के आने से पहले का ये केस है तो इसमें 1991 वाला कानून से बहार है और वह पर सिंगर गौरी का पूजा होता आया है.

ज्ञानवापी को लेकर पहले भी हो चुका है संघर्ष प्रोफेसर राकेश पांडे

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर राकेश पांडे कहते हैं कि 13वीं सदी में मुसलमान शासकों ने ज्ञानवापी पर हमला किया था।और मंदिर के ऊपर अपने धार्मिक अस्थल का निर्माण राकेश पांडे कहते है ज्ञानवापी को लेके पहले व् संघर्ष हो चूका है सन 1809 की बात करते हुवे कहते है जब हिन्दू लोगो ने विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बिच में एक छोटा सा अस्थान बनाना चाहा तो तब भीषण दंगे हुए थे जिसके बाद प्रोफेसर राकेश पांडे कहते हैं 15 अगस्त 1947 के बाद जो स्थिति है वो मानी जाएगी क्यों की हमें मुगल काल से नहीं संविधान और भारत के न्याय व्यवस्था से चलना है।

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