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Sakat Chauth 2024:सकट चौथ व्रत की कथा और कहानी यहाँ पढ़े

By ravithakur Jan 29, 2024 #Sakat Chauth
Sakat Chauth
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माघ माह की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ या तिलकुटा के नाम से जाना जाता है इस दिन माताए अपनी संतान की दीर्घायु के लिए व्रत करती है ये निर्जला व्रत होता है सकट चौथ क्र देवता भगवान श्री गणेश को माना जाता है यह व्रत मुख्य रूप से उतर भारत के राज्यों में मनाया जाता है इस वर्ष सकट चौथ 29 जनवरी 2024, सोमवार को मनाया जा रहा है चतुर्थी तिथि 29 जनवरी सुबह 6:10 पर आरम्भ होकर अगले दिन 30 जनवरी सुबह 8:50 पर समाप्त होगी

Sakat Chauth 2024

Sakat Chauth 2024:चंद्रोदय समय

दिन में कथा सुनने के बाद रात को भगवान चंद्र को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है,सभी महिलाओ को चाँद के आने की प्रतीक्षा रहती है अगर आप दिल्ली में रहते है,तो आपको बता दे की दिल्ली में चंद्रोदय का समय 9:10 का है

Sakat Chauth 2024:व्रत कथा(1)

ॐ गणः गणपतय नमः

एक शहर में देवरानी-जेठानी रहा करती थी जेठानी बहुत अमीर थी किन्तु देवरानी बहुत गरीब थी देवरानी का पति जंगल से लकड़ियां काट कर शहर में बेचा करता था और अक्सर बीमार रहता था इस वजह से देवरानी को जेठानी के घर में काम करने जाना पड़ता था इसके बदले में जेठानी बचा हुआ खाना,पुराने कपडे देवरानी को दे देती थी इसी से देवरानी का घर चल रहा था माघ माह में देवरानी ने तिलकुटा का व्रत किया देवरानी ने 5 रूपए के तिल और गुड़ लाकर तिलकुटा बनाया पूजा की और कथा सुनी और बचा हुआ तिलकुटा छींके में रख दिया सोचा चाँद उगने पर चन्द्रमा को अर्घ देकर तिलकुटा खाकर व्रत खोलूंगी इसके बाद वह जेठानी के घर काम पर चली गयी खाना बना कर उसने जेठानी के बच्चो से खाना खाने को कहा बच्चो ने कहा की माँ व्रत रखी है तो जब तक माँ नहीं खाएंगी हम भी नहीं खाएंगे फिर उसने जेठ जी से कहा की खाना खा लीजिये तो इस पर जेठजी बोले में अकेले कैसे खा लू जब सब खाएंगे तभी मै भी खा लूंगा

जेठानी ने देवरानी से कहा कि आज तो अभी तक किसी ने भी खाना नहीं खाया है तो मै तुम्हे खाना कैसे दू तुम सुबह आकर बचा हुआ खाना ले जाना और उधर देवरानी के घर पर पति और बच्चे सब इन्तिज़ार में थे की आज तो त्यौहार था बढ़िया पकवान बने होंगे तो हमे खाने को मिलेंगे लेकिन जब बच्चो को पता लगा की आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे और उसका पति भी उस पर गुस्सा करने लगा और कहने लगा की जब सारा दिन काम करके भी 2 रोटी नहीं ला सकती हो तो काम क्यों करती हो
पति ने अपनी पत्नी को कपडे धोने के धोवने से मारा वो टूट गया तो पटले से पीटा और पत्नी बेचारी गणेशजी को याद करती हुई रोते रोते पानी पी कर सो गई
उस दिन गणेशजी देवरानी के सपने में आये और कहने लगे धोवना पीटी पटले पीटी सो रही है या जाग रही है
वह बोली कुछ सो रही हु कुछ जाग रही हु गणेशजी कहने लगे कुछ खाने को दे दो भूख लगी है तो इस पर देवरानी बोली मेरे यहाँ तो कुछ भी नहीं है जेठानी जो बचा हुआ खाना देती थी आज तो वो भी ना मिला, पूजा का तिलकुटा छींके में पड़ा है जाओ वही खा लो तिलकुटा खाने के बाद गणेशजी बोले धोवना पीटी पटले पीटी निपटाय लगी है कहाँ निपटे वह बोली पूरा घर पड़ा है जहा मान करे निपट लो
गणेशजी बोले कहाँ पोंछू उसे बहुत गुस्सा आया और बोली मेरे सिर से पोंछ लो और कहां पोछोगे

जब सुबह देवरानी उठी तो क्या देखती है की पूरा घर हीरे मोती से जगमगा रहा है उसके माथे पर हीरे मोतियों के टीके सजे है उस दिन देवरानी जेठानी के घर काम करने नहीं गयी बहुत इन्तिज़ार करने के बाद जेठानी ने बच्चो से कहा जाओ चाची को घर से बुला लाओ सारा काम पड़ा है जब बच्चे चाची के है पहुंचे और बोले चलो चाची माँ बुलाती है सारा काम पड़ा है तोह देवरानी कहने लगे अब तो गणेशजी की कृपा से सब भरपूर है तब क्यों काम पर आउ तब बच्चो ने घर जाकर माँ को बताया की चाची का घर तो हीरे मोतियों से जगमगा रहा है ये सुन जेठानी दौड़ती हुई देवरानी के घर पहुंची और पूछा ये सब कैसे हुआ देवरानी ने जो भी हुआ वो सब उसे कह सुनाया घर लौट कर जेठानी ने अपने पति से कहा मुझे धोवने और पाटी से पीटो तो इस पर पति ने कहा भाग्यवान मैंने तो आज तक तुम पर कभी हाथ भी नहीं उठाया मै तुम्हे कैसे पीट सकता हूँ लेकिन वो नहीं मानी और ज़िद करने लगी इस पर उसके पति ने उसे पीटा इसके बाद जेठानी ने खूब घी डालकर चूरमा बनाया और छींके में रख कर सो गई रात को गणेशजी उसके सपने में आये और कहने लगे भूख लगी है क्या खाऊ तो जेठानी बोली गणेशजी आपने देवरानी के यहाँ रुखा सूखा तिलकुटा खाया था मैंने तो बहुत सा घी डालकर आपके लिए चूरमा बना कर छीके में रखा है साथ में मेवे मिष्ठान भी रखे है जितना मन हो भोग लगाए खाने के बाद गणेशजी बोले अब खा निपटे तो जेठानी बोली देवरानी की तोह टूटी फूटी झोपडी थी मेरे तो कंचन महल है जहा मन हो निपट लो इसके बढ़ गणेशजी बोले अब पोछे कहाँ तो जेठानी बोली मेरे माथे से पोंछ लो सुबह जेठानी जल्दी उठ गयी और घर देखा तो हैरान रह गयी पूरा घर गन्दा पड़ा था हर जगह मक्खी और बदबू फैली पड़ी थी वो जितना घर को साफ़ करती उतना ही घर गन्दा होता जाता ये सब देख उसका पति बोला तुम पर सब कुछ होते हुए भी तुम्हारा मन नहीं भरा ये सब तुम्हारे लालच का ही फल है तब गणेशजी से माफी मांगने लगे तो गणेशजी बोले तेरे देवरानी से जलन और धन के लोभ का ही ये परिणाम है अब तो ये सब तभी ठीक होगा जब तू अपनी देवरानी को सब सम्पति का आधा हिस्सा दे देगी इस पर जेठानी ने सभी चीज़ो का आधा बटवारा कर दिया लेकिन एक मणि की पोटली चूल्हे के नीचे छुपी रखी थी तब गणेशजी बोले वो पोटली भी तो निकाल कर ला जो चूल्हे के नीचे छुपी रखी है फिर उसका भी बटबारा हुआ इसके बढ़ गणेशजी ने अपनी सारी माया समेट ली
हे सकट देवता जैसे अपने देवरानी पर कृपा की वैसे सब पर करना जय गणेशजी की

Sakat Chauth 2024:व्रत कथा(2)

एक बार गणेशजी बाल रूप में चुटकी भर चावल और एक चम्मच दूध लेकर पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकले। वे सबसे यह कहते घूम रहे थे, कोई मेरी खीर बना दे, कोई मेरी खीर बना दे। लेकिन सबने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तभी एक गरीब बुढ़िया उनकी खीर बनाने के लिए तैयार हो गई। इस पर गणेशजी ने घर का सबसे बड़ा बर्तन चूल्हे पर चढ़ाने को कहा। बुढ़िया ने बाल लीला समझते हुए घर का सबसे बड़ा भगौना उस पर चढ़ा दिया।
गणेशजी के दिए चावल और दूध भगौने में डालते ही भगौना भर गया। इस बीच गणेशजी वहां से चले गए और बोले अम्मा जब खीर बन जाए तो बुला लेना। पीछे से बुढ़िया के बेटे की बहू ने एक कटोरी खीर चुराकर खा ली और एक कटोरी खीर छिपाकर अपने पास रख ली। अब जब खीर तैयार हो गई तो बुढ़िया माई ने आवाज लगाई-आजा रे गणेशा खीर खा ले।
तभी गणेश जी वहां पहुंच गए और बोले कि मैंने तो खीर पहले ही खा ली। तब बुढ़िया ने पूछा कि कब खाई तो वे बोले कि जब तेरी बहू ने खाई तभी मेरा पेट भर गया। बुढ़िया ने इस पर माफी मांगी। इसके बाद जब बुढ़िया ने बाकी बची खीर का क्‍या करें, इस बारे में पूछा तो गणेश जी ने उसे नगर में बांटने को कहा और जो बचें उसे अपने घर की जमीन गड्ढा करके दबा दें।

अगले दिन जब बुढ़िया उठी तो उसे अपनी झोपड़ी महल में बदली हुई और खीर के बर्तन सोने- जवाहरातों से भरे मिले। गणेश जी की कृपा से बुढ़िया का घर धन दौलत से भर गया। हे गणेशजी भगवान जैसे बुढ़िया को सुखी किया वैसे सबको खुश रखें

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